दीवाली का रहस्य

खुशियों की बहार लेकर फिर ‘दीवाली’ आई

बधाई बहनों भाई पहले ‘धनतेरस’ है आई।

धनतेरस है यादगार उस पल का जब

तमोप्रधान आत्माओं ने शिव से 

नए दिव्य बुद्धि रूपी वर्तन पाई

बधाई बहनों भाई अब ‘नरक चतुर्दशी’ है आई।

नरक चतुर्दशी प्रतीक है तब का जब

देह अभिमान रूपी नरकासुर को मारकर  शिव ने 

सबको विकारों कि जेल से मुक्ति दिलाई

बधाई बहनों भाई अब तो ‘दीवाली’ भी आई।

अमावस्या रात रूपी कलियुग में 

दीपराज परमात्मा शिव धरा पर आकर 

आत्मा रूपी दीपकों की आत्म-दीप जलाई

बधाई बहनों भाई, बधाई हो बधाई।

विकारों रूपी कालिमा, जो रोकती नवयुग की लालिमा 

इच्छाओं-तृष्णाओं रूपी जाले, जो बना डाले हैं काले 

हिंसा-कपट रूपी कूड़ा-कर्कट, बने हैं जो बड़े ही संकट

ईर्ष्या-द्वेष रूपी मक्खी-मच्छर की भी हुई सफाई

बधाई बहनों भाई, बधाई हो बधाई।

ज्ञान-योग के घृत पाकर आत्माएँ फिर जगमगाए

दयनीय पतित आत्मा भी पूज्यनीय बन जाए

पुराने संस्कारों की आतिशबाजी करवाकर शिव ने

नये सतयुगी संस्कारों के वस्त्र पहनाई

बधाई बहनों भाई, बधाई हो बधाई।

ज्ञान का धन है सबसे ऊँचा, सब धन का आधार 

ज्ञान लक्ष्मी बनकर बांटे, ज्ञान के हार-श्रृंगार

नारी-लक्ष्मी, नर-नारायण दे ऐसी झलक दिखाई

बधाई बहनों भाई अब ‘गोवर्धन पूजा’ है आई।

कलियुगी पहाड़ गोवर्धन पर्वत को उठाने

प्रभु जब धरा पर आए, बच्चे भी हाथ बँटाये

एक अंगुली के सहयोग से शिव ने सबकी भाग्य बनाई

बधाई बहनों भाई अब ‘भैयादूज’ व्रत भी आई।

ईश्वर धरा पर आकर भाई-बहन का पवित्र रिश्ता बनाया

बहने भी तिलक लगाती भाई को, शिव ने तीन बिंदी लगाया

तीन बिंदी का ज्ञान पाकर सबने की 21 जन्मों की कमाई

बधाई बहनों भाई, बधाई हो बधाई।।




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